कर्मचारियों के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार देश हित में।

कर्मचारियों के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार देश हित में।
     किसी भी देश के सरकार द्वारा लोक कल्याणकारी योजनाओं के संचालन, क्रियान्वयन का मुख्य जिम्मेदारी बिभिन्न प्रकार के श्रेणीगत कर्मचारियों का होता है। कर्मचारियों के बीच कभी-कभी किसी पहलुओं के लेके नाराजगी होना स्वाभाविक है ऐसे में यदि सरकार और इन श्रेणीगत कर्मचारियों के बीच अच्छे ताल मेल का नतीजा है परिणाम शत प्रतिशत लगू होना।
किसी भी योजनाओं को मूर्त रूप देने में सत्य, सौहार्द, आपसी एकता, ईमानदारी और निष्ठा बहुत जरूरी है। कर्मचारियों के कार्यो के एवज में जो उनका उचित पारिश्रमिक है उसके हितों को नजरअंदाज करने से सीधा प्रभाव योजनाओं के उद्धस्यों एवं पूर्ति पर पड़ती है। इसलिये समय-समय पर महंगाई वृद्धि के मध्यनजर प्रशिक्षित कर उनका आकलन के फलस्वरूप वेतन-भत्ते में वृद्धि करना उन कर्मचारियों के हित में भी है तथा संबंधित योजनाओं के क्रियान्वयन के अच्छे परिणाम से देश हित में भी है।

आजकल कई कार्यालयों, संस्थानों में आपसी बिभिन्न श्रेणीगत कर्मचारियों के बीच खूब ताना-तानी का माहौल है समरूप पोस्ट वाले में भी एक दूसरे से श्रेष्ठता काबिल आदि पर अभिमान है एवं उच्च पोस्ट, निम्न पोस्ट में संतुलन सौहार्द का गहरा खाई है तथा अन्य और कारणों से प्रत्येक कर्मचारी में गहरा असंतोष है कलह है जिसके कारण संस्था या उस विभाग बुलंदियों एवं वास्तविक कार्य संपादन में अड़चनें पैदा हो रही जिसका सीधा असर उन बेकसूर लाभार्थियों पर पड़ रहा है। कार्यालय प्रमुख/विभाग प्रमुख जब निचले कर्मचारियों पर खिन्न उदास एवं डाँटता, फटकारता दंडित अपमानित करता है तो उसका असर सीधा उस कर्मचारी के घर तक उच्च दबाव मानसिक मनोवृत्ति चिड़चिड़ापन उसके पत्नी, बच्चों एवं उसकी माता जीवित हैं तो उन तक भी पहुँचती है और घर मे अशांति कलह कोहराम मचता है और आर्थिक तंगी, रोग व्याधि से ग्रसित रहता है। यदि कर्मचारी खुद तनावग्रस्त है तो वह विभाग के कार्यो को निष्ठापूर्वक कैसे करेगा ? फिर इसका सीधा असर बिभाग, संस्था के मूल उद्देश्यों पर पड़ेगा।
आपसी सामंजस्य बैठा कर तथा आपसी एकता प्रेम सौहार्द से एवं ऊंच- नीच का भेद-भाव मिटा कर प्रेमपूर्वक संस्थागत कार्य किये जायें तथा सभी वर्ग के कर्मचारियों को अपनी बात रखने का एवं स्वतंत्र मर्यादित बोलने का मौका दिया जाए। कर्मचारियों का जो निर्धारित मासिक मानदेय है उसमें कोई किंतु-परंतु न हो यदि कार्य असंतोषजनक हो फिर भी उसे प्रेमाग्रह से समझाइए प्रेम की भाषा तो पशु समझते है तो वह इंसान क्यों नहीं समझेगा? जब प्रेम की भाषा न समझे तो विभागीय कार्यवाही का प्रावधान तो है ही। मल्टीटास्किंग कार्य सभी परिस्थितियों में शत प्रतिशत संभव नहीं है यदि संभव होता तो डॉक्टर रोगियों को भी उपचार करता और शारीरिक अंगों के तोड़-जोड़ इंजीनियरिंग कार्य जानने के कारण और इंजीनियरिंग जैसे कि रोड-पूल या वाहन निर्माण भी करता तथा वैसे ही एक ऑटोमोबाइल या किसी भी उद्यम का इंजीनियर डॉक्टरी का भी कार्य करता... यह संभव नहीं है और ये प्राकृत  नियम के विरुद्ध है। एक व्यक्ति एक ही प्रकार के कार्यो में गुणवत्तापूर्ण निपुण हो सकता है विभिन्न कार्यों में उसकी गुणवत्ता चर्मोत्कर्ष पर नहीं होगी।

यदि अध्यात्म से समझना चाहें तो महाभारत की द्रोपदी भगवान शंकर की आराधना की, जब भगवान शंकर द्रौपदी की कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहें तो उसने वर में मांगा की मेरा पति सर्वश्रेष्ठ धर्मज्ञ हो, मेरा पति सर्वश्रेष्ठ बलवान गदाधारी हो, मेरा पति सर्वश्रेष्ठ धनुर्विद्या का ज्ञाता सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हो तथा मेरा पति सुंदर भी और ज्ञानवान भी हो।भगवान शंकर ने कहा ये पांचों गुण किसी एक व्यक्ति में समाहित हो पाना असंभव है देवी ऐसा नहीं हो सकता यह विधि के विधान के विपरीत है कोई दूसरा वर मांग लो। तभी द्रौपदी ने कहा प्रभु आप तो भगवान हो सर्व सामर्थ्यवान हो सृष्टि के रचयिता भी और संघारक भी हो आपके लिये क्या असंभव है मुझे यही वर चाहिये जिद पर अड़ गई। अंत में भगवान शंकर ने कहा तथास्तु।
तदुपरांत द्रौपदी को पांच पति का अविलंब प्राप्त हुए उस दरमियान अपनी जिंदगी से द्रौपदी अपने साथ घटित घटना से काफी विचलित एवं उदास खिन्न हो गई तभी भगवान कृष्ण ने उसे समझाया यह तो तुम्हारे जिद का ही फल है तुमने ही तो मांग था यह पाँच विशिष्ट गुण वाले पति और आज संसार में युधिष्ठिर से बड़ा कोई धर्मज्ञ नहीं, भीम से बड़ा कोई गदाधारी, बलवान नहीं, अर्जुन से बड़ा कोई श्रेष्ठतम धनुर्धर नहीं और नकुल सहदेव से बड़ा कोई सुंदर, ज्ञानवान नहीं।

अतः इस प्रसंग से यही सिख मिलती है कि कार्यालयों संस्थाओं में स्टाफों की कमी या नवनियुक्ति न होने के कारण विभागीय कार्यो के दबाव जिसमें एक व्यक्ति से मल्टीटास्किंग कार्यो की अपेक्षा की जा रही है वो न विभाग हित में है और न ही उस विभाग का जो उद्देश्य है उसकी हित में है और न ही समाज/लोक हित में है। अतः एक ऐसी प्रणाली विकसित की जाए जिससे दोनों वर्ग विभाग, कर्मचारी एवं लाभार्थी का समेकित सम्पूर्ण विकास निर्बाध हो सके।


🖋️ अभिषेक़ कुमार
अंतराष्ट्रीय समाज सेवा अवार्ड से सम्मानित, हिंदी साहित्यकार व प्रकृति प्रेमी
ठेकमा, आजमगढ़

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